नई दिल्ली। जब से बजट में ऐलान हुआ है कि रेकरिंग डिपॉजिट (RD) पर भी TDS लगेगा, तब से डिपॉजिटर्स में समय से पहले RD एकाउंट्स बंद कराने की होड़ मच गई है। RD पूरी तरह टैक्सेबल है लेकिन इस पर मिलने वाले ब्याज पर TDS लागू नहीं होता। TDS तभी लागू होता है जब फिक्स्ड डिपॉजिट्स से हासिल इंटरेस्ट किसी साल 10,000 रुपये से ज्यादा हो जाता है।
नए रूल को 1 जून से लागू किए जाने का प्रपोजल है लेकिन इसके पहले की टैक्स डिपार्टमेंट के ऑफिसर्स को इन पैसों की भनक लग जाए, डिपॉजिटर्स में RD बंद करने की होड़ मच गई है। एक पीएसयू बैंक की दिल्ली की एक ब्रांच के एक डिपॉजिटर ने बताया, 'रेकरिंग डिपॉजिट को समय से पहले बंद कराने पर कम इंटरेस्ट से संतोष करना होगा लेकिन इस पर कम से कम टैक्स डिडक्शन तो नहीं होगा।' जैसे-जैसे डिपॉजिटर्स के बीच नए रूल्स की जानकारी फैलती जाएगी, वैसे-वैसे बैंकों में समय से पहले रेकरिंग डिपॉजिट बंद कराने वाले इनवेस्टर्स की संख्या बढ़ती जाएगी।
निवेशकों में घबराहट मचने की वजह कोई अबूझ पहेली नहीं है। चूंकि TDS इनवेस्टर के पैन में क्रेडिट होता है, इसलिए टैक्स रिटर्न में उसका जिक्र नहीं करने से उनके सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। टैक्स डिपार्टमेंट का कंप्यूटर एडेड स्क्रूटनी सिस्टम टैक्स क्रेडिट और डिक्लेयर्ड इनकम में फर्क पकड़ सकता है। ऐसा होने पर टैक्स अथॉरिटीज उस मामले में डिटेल्ड स्क्रूटनी कर सकते हैं।
अगर TDS लागू हो गया है, लेकिन रिटर्न फाइल नहीं की गई है तो टैक्स डिपार्टमेंट उसकी वजह के बारे में दरियाफ्त कर सकता है। टैक्सस्पैनर के को-फाउंडर और CFO सुधीर कौशिक कहते हैं, 'TDS पर नए रूल से लोगों का टैक्स चुकाने से बचना मुश्किल हो जाएगा और इससे टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी होगी।'
फिक्स्ड डिपॉजिट के भी TDS रूल्स में बदलाव किया जा रहा है। अब तक तो TDS तभी लागू होता है, जब किसी एक बैंक ब्रांच में किए गए एफडी की इनकम एक साल में 10000 रुपये से ज्यादा हो जाती है। ऐसे में TDS से बचने के लिए बैंकों की कई शाखाओं में फिक्सड डिपॉजिट खोलना आम बात है। लेकिन इस बजट में यह प्रस्ताव किया गया है कि एक साल में एक बैंक की सभी ब्रांच में की गई FD से हासिल इंटरेस्ट की रकम 10000 रुपये से ज्यादा होने पर उस पर TDS लागू होगा। तीसरा बड़ा चेंज यह है कि TDS को-ऑपरेटिव बैंक के डिपॉजिट पर भी लागू होगा। इसकी उम्मीद की ही जा रही थी।
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