
पुलिस ने हत्यारे के तौर पर ग्राफिक डिजायनर, अजय विश्वकर्मा (22) की पहचान की। उसका दोस्त जय प्रजापति (20) बारहवीं कक्षा का छात्र था जो उसी मुहल्ले में रहता था। हालांकि वे गहरे दोस्त थे, लेकिन अजय विश्वकर्मा इस बात से काफी दुखी था कि उसके गर्लफ्रेंड के सामने उसका मित्र जय प्रजापति उसका मजाक उड़ाने का एक भी मौका नहीं गंवाता है।
उसने बदला लेने का सोचा और एक महीने तक दोस्त को मौत के घाट उतारने के लिए प्लानिंग की। चूंकि जय उसकी गर्लफ्रेंड के सामने उसे अपमानित करता था इसलिए अजय ने भी ऐसा ही करने का निर्णय लिया। नैंसी दीक्षित नाम से एक लड़की की तरह वह जय को फोन और मैसेज करने लगा। यह प्रक्रिया एक माह तक चली जब तक कि जय पूरी तरह लड़की के गिरफ्त में नहीं आ गया।
28 जुलाई को नैंसी बने अजय ने 9 फोन और तीन मैसेज किए जिसमें उसे बीच रात को नईगांव में एक एकांत जगह पर मिलने बुलाया। अजय पहले भी जय को उस जगह पर एक बार ले जा चुका था और कहा था कि नैंसी यहीं रहती है। उसने ऐसा इसलिए किया कि समय आने पर जय उस जगह बिना किसी की मदद के ही पहुंच जाए। मामले से बिल्कुल अनभिज्ञ जय नैंसी से मिलने उस जगह पर पहुंच गया लेकिन वहां इंतजार कर रहे अजय व उसके साथियों ने जय को बुरी तरह पीटा और उसके मर जाने के बाद वहीं फेंक दिया।
जब जय घर नहीं लौटा तो उसके पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी। तब तक पुलिस को गुमराह करने के लिए अजय ने दूसरा प्लान तैयार कर लिया था। 31 जुलाई को जय के पिता को उसने किडनैपर के तौर पर फोन किया और 15 लाख रुपये की मांग की। लेकिन उसने यहीं गलती कर दी। उसने जय के फोन से कॉल किया था, पुलिस ने आसानी से कॉल डिटले रिकार्ड निकाल लिया। कॉल लॉग से पुलिस ने पता लगाया कि मौत से पहले एक ऐसे नंबर से जय को अनेकों कॉल और मैसेज आए थे जो अजय के नाम पर रजिस्टर्ड थे।
इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद भी अजय ने गुमराह करने की बहुत कोशिश की। उसने कहा कि उसकी आंखों के सामने जय का अपहरण हुआ लेकिन पुलिस ने उसकी कहानी नहीं सुनी क्योंकि उन्होंने अजय के घर से कई सिम कार्ड बरामद किए थे। अजय के साथ उसके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। वैसे तो उसने खुद को बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन पुलिस के पास पर्याप्त सबूतों के आगे वह लाचार हो गया और अंतत: हत्या का अपराध कबूल कर लिया।
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